पकंज त्रिपाठी के बारे में कुछ रोचक बातें (Some interesting facts about Pankaj Tripathi)



पंकज त्रिपाठी (pankaj tripathi) का जन्म बिहार के छोटे से गाँव में हुआ था।
पंकज त्रिपाठी (pankaj tripathi) का जन्म बिहार राज्य के गोपालगंज जिले के बेलसंड नामक गाँव में 5 सितंबर 1976 को हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित बनारस त्रिपाठी और माता का नाम हेमवंती देवी है। पंकज के दो भाई और दो बहनों है जिनमे से पंकज सबसे छोटे भाई है।



पंकज त्रिपाठी (pankaj tripathi) के पिता एक किसान है। शुरुआत मे वे भी खेती का काम किया करते थे।
किसान के बेटे होने के नाते पंकज ग्यारहवी क्लास तक पढ़ाई के साथ-साथ खेतो मे भी काम करते थे। एक इंटरव्यू मे उन्होने कहा था की एक बार उनके पिता ने बैंक से कुछ पैसे लोन लिए और 500 रुपए का सिचाई पंप खरीदा। खेत मे होने के कारण वह पंप चोरी होने खतरा होता था। इसलिए वे पिता के साथ रात का खाना जल्दी खा के खेत चले जाते थे ताकी कोई उसे चुरा ना सके।



गाँव के कार्यक्रम मे लड़की बनते थे
अभिनय की आग पंकज (pankaj tripathi) के अंदर छोटी उम्र से ही सुलगती रही है। जब कभी गाँव मे महोत्सव के दौरान नाटक का कार्यक्रम आयोजित किया जाता था तब पंकज उनमे भाग लिया करते थे। अक्सर उन्हे लड़की बनने का मौका मिलता था क्योकि उस रोल को गाँव मे वे बखूबी निभा सकते थे और लोगो को पसंद भी आता था। हालाकी उस समय किसी को अंदाजा भी नही रहा होगा की यह लड़का आंगे चलकर बॉलीवुड स्टार बन जाएगा।
कॉलेज के दिनों मे जाना पड़ा जेल
कॉलेज मे पढ़ते हुए वे राजनीती मे सक्रिय थे और बीजेपी छात्र संगठन आखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य थे। साल 1993 मे लालू प्रसाद यादव की सरकार के खिलाफ कुछ कारणो को लेकर आंदोलन करने पर पंकज त्रिपाठी को सात दिनों के लिए जेल जाना पड़ा था। हालाकी बाद मे उन्होने राजनीती मे आने का फैसला भी किया था लेकिन बाद मे अपने विचारो को बदल लिया।
पिता बनाना चाहते थे डॉक्टर
पंकज त्रिपाठी (pankaj tripathi) के पिता बनारस त्रिपाठी चाहते थे की उनका बेटा डॉक्टर बने। इसलिए पिता का इच्छा पूरा करने के लिए पंकज ने मेडिकल की प्रवेश परीक्षा दो बार दी और असफल रहे। फेल हो जाने के बाद चाचा की सलाह से होटल मैनेजमेंट का कोर्स करने लगे।
घर मे नही था टीवी
पंकज (pankaj tripathi) कहते है कि जब वे छोटे थे तो उनके घर मे टीवी नही था। क्लास 10th तक वे फिल्मों के बारे मे नही जानते थे। एंटेरटेनमेंट के लिए भी रंगमंच उनके गाँव से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था।
होटल मे दो सालो तक खाना बनाने का काम किया
जब पंकज होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर रहे थे तब उन्हे अपने खर्चो को चलाना मुसकिल पड़ रहा था इसलिए उन्होने पटना के मौर्य होटल मे रसोइया का काम शुरू कर दिया था। रसोइया के रूप मे पंकज ने लगभग दो सालो तक काम किया।
नाटक “अंधा कुआं” देखकर रोने को हो गए मजबूर
लक्ष्मीनारायण लाल के द्वारा रचा गया थिएटर नाटक “अंधा कुआं” उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड बना। एक साक्षात्कार मे उन्होने कहा “मेरा जीवन पूरी तरह से बदल गया जब अभिनेत्री प्रणिता जायसवाल एक शक्तिशाली एकालाप थी। दृश्य को देखकर मै रोने लगा और मुझे उस समय महसूस हुआ की यह कितना प्रभावशाली माध्यम है किसी चीज को प्रस्तुत करने का।
सालभर खाई खिचड़ी
पंकज को थिएटर देखना बहोत पसंद था इसलिए उन्होने पटना मे बिहार आर्ट थिएटर जॉइन कर लिया। वे कहते है थिएटर करते समय वे हर महीने गाँव जाते थे और घर से चावल, दाल और सरसो का तेल बोरे मे भरकर पटना ले आते थे। महीनेभर के खाने का इंतजाम हो जाता था। इस तरह उन्होने सालभर खिचड़ी बनाकर खाई है।
यादगार के रूप मे चप्पल चुराई
जब पंकज होटल मे नौकरी करते थे तब उन्हे पता चला कि मनोज बाजपेयी होटल मे ही रुके हुए है। मनोज से मिलने के लिए वे उनके कमरे मे ऑर्डर लेने के लिए गए और हाथ मिलाया। साथ ही बताया कि मैं भी थियेटर करता हूं। वे कहते है जब वह होटल के कमरे से बाहर निकले तो किसी ने मुझे बताया कि मनोज ने अपनी चप्पल कमरे में ही छोड़ दी है। मैंने कहा कि इसे वापस मत करो मेरे लिए इसे छोड़ दो, मैं इसे आशीर्वाद और यादगार के रूप में अपने पास रखूंगा।
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चार साल तक किया थिएटर
1995 मे भीष्म साहनी की कहानी पर बनी नाटक “लीला नंदलाल” मे पहली बार पंकज को देखा गया। इस नाटक मे पंकज एक स्थानीय चोर की भूमिका मे नजर आए थे जो कि बहोत छोटी सी भूमिका थी। इस नाटक को डायरेक्ट किया था विजय कुमार ने। 1996 के बाद थिएटर मे उन्हे नियमित तौर से देखा जाने लगा था। इस तरह लगभग चार सालो तक उन्होने थिएटर किया है।
दो बार नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा ने कर दिया था रिजेक्ट
पटना मे नौकरी करने के बाद पंकज साल 2001 मे दिल्ली आ गए और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा मे प्रवेश ले लिया। हालाकी इससे पहले वे दो बार नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के द्वारा रिजेक्ट किए जा चुके थे। तीसरी बार मे उन्हे सफलता मिली थी, यहा से उन्होने साल 2004 मे स्नातक पूरी की।
कैसे मिले अपनी पत्नी से
पंकज त्रिपाठी ने लव मैरिज की है, इससे पहले उनके गाँव मे किसी ने लव मैरिज नही की थी। पंकज की पत्नी बताती है कि मेरे भाई की शादी पंकज के बहन से हुई है। पंकज को उन्होने भाई के तिलक मे देखा था। दोनों ने पहली नजर मे ही एक-दूसरे को पसंद कर लिया था। पुछने पर पता चला कि यह लड़का दुल्हन का भाई है। उस समय मोबाइल फोंस नही हुआ करते थे इसलिए बाते करना थोड़ा मुसकिल था। समय के साथ दोनों की नज़दीकियाँ बढ़ती गई। पंकज पटना मे थे और उनकी पत्नी कोलकाता मे दोनों ने तय किया कि वे हर दिन सुबह 7.30 बजे और रात 8 बजे, लैंडलाइन नंबर के जरिए एक-दूसरे से बात किया करेंगे। 14 जनवरी 2004 को दोनों ने शादी की थी।
पत्नी के खर्चो पर चलता था घर
एक दोस्त के कहने पर स्नातक के बाद पत्नी के साथ 16 अक्टूबर 2004 को मुम्बई आ गए। यहा दो महीने तो दोस्त के यहा रहे बाद मे किराए का घर ढूंढ लिया। एक्टर बनना आसान नही था और घर चलाने के लिए पैसा चाहिए इसलिए पंकज ने पत्नी को टीचर की नौकरी करने की सलाह दी। कुछ स्कूलों मे आवेदन करने के बाद उन्हे नौकरी मिल गई। पंकज कहते है कि उस समय घर की सारी जिम्मेदारिया मृदुला ने उठा ली थी इसलिए फुटपाथ मे सोने जैसी नौबत नही आई।



छोटी – छोटी कई भूमिकाए की
साल 2004 में फिल्म ‘रन’ फिल्म में एक छोटी से कॉमेडी भूमिका निभाई थी जिसके लिए उन्हें कोई भी क्रेडिट नहीं दिया गया था । साल 2004 से लेकर 2010 तक पंकज ने छोटे पर्दे पर कई छोटी भूमिकाएं और टाटा टी का एक विज्ञापन किया था। और साल 2010 में स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला “गुलाल” टीवी कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।



गैंग्स ऑफ़ वासेपुर ने दिलाई सही पहचान
मुम्बई आने के आठ साल बाद पंकज को साल 2012 मे गैंग्स ऑफ़ वासेपुर फिल्म मे काम करने का मौका मिला। इसके लिए उन्हे आठ घंटे चले ऑडिशन मे भाग लेना पड़ा था। फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर में “सुल्तान” की भूमिका ने उन्हें दर्शकों व आलोचकों के पास खिच लाई, लोगो के जुबा पे उनका नाम आने लगा। पंकज का अभिनय लोगो ने खूब पसंद किया। इसके बाद उन्हे लगातार अच्छे ऑफर आने लगे।
फिल्मोग्राफी
साल | फ़िल्म | भूमिका | टिप्पणी |
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2004 | रन | ||
2005 | अपहरण | गया सिंह का मित्र | |
2006 | ओमकारा | किचलू | |
2007 | धर्म | सूर्यप्रकाश | |
2008 | मिथ्या | तिपनिस | |
शौर्य | मेजर वीरेंद्र राठौड़ | ||
2009 | चिंटू जी | पप्लू यादव | |
बारह आना | इंस्पेक्टर | ||
2010 | वाल्मीकि की बंदूक | बीडीओ त्रिपाठी | लघु कहानी |
रावण | |||
आक्रोश | किशोर | ||
2011 | चिल्लर पार्टी | सेक्रेटरी दुबे | |
2012 | अग्निपथ | सूर्या | |
गैंग्स ऑफ वासेपुर – भाग 1 | सुल्तान कुरेशी | ||
गैंग्स ऑफ वासेपुर – भाग 2 | |||
दबंग 2 | फिलावर | ||
2013 | एबीसीडी | वर्धा भाई | |
रंगरेज़ | बृजबिहारी पांडे | ||
फुकरे | पंडित | ||
अनवर का अजब किस्सा | अमोल | ||
माज़ी | राठीजी | ||
जनता V/S जनार्दन – बेचारा आम आदमी | |||
Doosukeltha | Dilleeswara राव | तेलुगु फ़िल्म | |
2014 | गुंडे | लतीफ़ | |
सिंघम रिटर्न्स | अल्ताफ़ | ||
2015 | मांझी: द माउंटेन मैन | रुआब | |
लाइफ बिरयानी | |||
मसान | Sadhya जी | ||
दिलवाले | अनवर | ||
2016 | निल बट्टे सन्नाटा | प्राचार्य श्रीवास्तव | |
ग्लोबल बाबा | डमरू | ||
मैंगो ड्रीम्स | सलीम | English | |
2017 | कॉफ़ी विद डी | गिरधारी | |
अनारकली ऑफ आरा | Rangeela | ||
न्यूटन | आत्मा सिंह | ||
गुड़गांव | Kehri सिंह | ||
बरेली की बर्फी | नरोत्तम मिश्रा | ||
फुकरे रिटर्न्स | पंडित | ||
मुन्ना माइकल | बल्ली | ||
2018 | कालाकांडी | ||
काला | पंकज पाटिल | तमिल फ़िल्म | |
अंग्रेज़ी में कहते हैं | फ़िरोज़ | ||
फेमस | त्रिपाठी | ||
स्त्री | रुद्रा | ||
हरजीता | कोच | पंजाबी फ़िल्म | |
भैयाजी सुपरहिट | बिल्डर गुप्ता | ||
यौर्स ट्रूली | विजय | World premiere at the 23rd BIFF in October 2018. | |
2019 | लूका छुपी | पोस्ट-प्रोडक्शन | |
ड्राइव | हामिद | ||
सुपर 30 | |||
2020 | शकीला (फिल्म) | ||
83 द फ़िल्म | मन सिंह |